दिल्ली के निजी स्कूलों में मनमानी फीस वृद्धि पिछले कुछ वर्षों से अभिभावकों के लिए एक बड़ी परेशानी बन गई है. अभिभावकों का कहना है कि स्कूल हर साल बिना किसी ठोस कारण के फीस बढ़ा देते हैं और शिक्षा निदेशालय (DoE) इस पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं करता. दिल्ली सरकार ने अभी तक ऐसा कोई ठोस कानून नहीं बनाया है जो निजी स्कूलों को मनमाने तरीके से फीस बढ़ाने से रोक सके. सरकारी जमीन पर बने स्कूलों को सरकार से इजाजत लेकर ही फीस बढ़ानी होती है, लेकिन यह नियम सभी निजी स्कूलों पर लागू नहीं होता. इसी वजह से कई स्कूलों में बिना किसी नियंत्रण के फीस में भारी बढ़ोतरी कर दी जाती है.

पिछले दस सालों में इस मुद्दे पर दिल्ली हाई कोर्ट में करीब 700-800 केस दर्ज हो चुके हैं. कई बार यह साबित भी हुआ है कि फीस जरूरत से ज्यादा बढ़ाई गई थी और बाद में अदालत के आदेश पर स्कूलों को फीस वापस करनी पड़ी. ऐसे मामलों को देखकर यह साफ होता है कि दिल्ली में एक सख्त और पारदर्शी कानून की जरूरत है जिससे स्कूल फीस पर नियंत्रण रखा जा सके.

हाई कोर्ट में पेंडिंग केस और DPS द्वारका का मामला
हाल ही में दिल्ली पब्लिक स्कूल (DPS), द्वारका में 32 छात्रों को सिर्फ इस वजह से स्कूल से निकाल दिया गया क्योंकि उनके अभिभावकों ने बढ़ी हुई फीस नहीं भरी. इन अभिभावकों ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की, जिस पर कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. अभिभावकों का कहना है कि वे केवल वही फीस भरना चाहते हैं जो शिक्षा निदेशालय द्वारा मंजूर की गई है, लेकिन स्कूल उनसे मनमानी फीस की मांग कर रहा है. इस दौरान स्कूल के बाहर बाउंसर लगाए गए ताकि बच्चे जबरन स्कूल में प्रवेश न कर सकें. शिक्षा निदेशालय ने बच्चों को स्कूल में प्रवेश देने का आदेश दिया, लेकिन इसके बावजूद उन्हें 16 मई तक स्कूल में नहीं आने दिया गया.

प्रदर्शन और अभिभावकों की पीढ़ा 
दिल्ली के 18 से ज्यादा निजी स्कूलों के अभिभावकों ने फीस वृद्धि के खिलाफ प्रदर्शन किया. उन्होंने शिक्षा निदेशालय के बाहर अपनी परेशानियां रखीं. प्रदर्शन के दौरान पुलिस, विशेषकर महिला पुलिसकर्मी भी तैनात की गईं. अभिभावक राजीव कुमार झा ने बताया कि उनके बच्चे की फीस में 42% की बढ़ोतरी हुई है. पहले साल 11,841 रुपये फीस थी, अब 12,026 रुपये हो गई है. इसके अलावा स्कूल उन पर लगातार फाइन भी लगा रहा है और DoE कोई एक्शन नहीं ले रहा. अभिभावक अतुल रहेजा ने कहा कि स्कूल यह नहीं बताता कि फीस क्यों बढ़ाई गई है. हर साल 15% की बढ़ोतरी कर दी जाती है. उन्होंने बताया कि वे और अन्य अभिभावक 17-18 स्कूलों के प्रतिनिधि बनकर DoE से मिलने पहुंचे थे. महेश, जिनके बच्चे DPS द्वारका में पढ़ते हैं, ने बताया कि स्कूल सिर्फ अप्रूव्ड फीस मांग सकते हैं, demanded फीस नहीं. उन्होंने आरोप लगाया कि स्कूलों में पिछले 2-3 वर्षों में 70 से 80% तक फीस बढ़ा दी गई है.

शिक्षा निदेशालय की निष्क्रियता
अभिभावकों का कहना है कि शिक्षा निदेशालय केवल नोटिस भेजता है लेकिन उस पर कोई कड़ी कार्रवाई नहीं करता. जब स्कूलों को किसी नोटिस का डर नहीं होता तो वे बेझिझक नियमों का उल्लंघन करते हैं. अभिभावक गरिमा गोयल ने बताया कि उनके बेटे की फीस एक ही सत्र में 10,000 रुपये से 17,500 रुपये हो गई है. अभिभावक दक्षा, जिनकी बेटियां सृजन इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ती हैं, ने कहा कि पहले वे 8,000 रुपये प्रति माह फीस दे रही थीं, फिर यह बढ़कर 12,000 और अब 16,000 रुपये हो गई है.

बच्चों को सजा और मानसिक उत्पीड़न
कुछ स्कूलों में तो स्थिति इतनी खराब हो गई है कि जो बच्चे बढ़ी हुई फीस नहीं दे रहे हैं, उन्हें सजा दी जा रही है. अभिभावक अंशु गौतम ने बताया कि उनके बच्चे की फीस 5,900 से बढ़कर 11,000 हो गई है. शिक्षा निदेशालय से अनुमति नहीं मिलने के बावजूद स्कूल हर साल फीस बढ़ा रहा है. जो बच्चे फीस नहीं दे पा रहे हैं उन्हें पिकनिक पर नहीं ले जाया जाता और कक्षा में अलग बैठाया जाता है. अभिभावक नितिन गुप्ता ने कहा कि स्कूल अभिभावकों को एटीएम मशीन समझते हैं. शिक्षा निदेशालय के नियम के अनुसार स्कूल 10% से ज्यादा फीस नहीं बढ़ा सकते लेकिन कुछ स्कूल 50% तक बढ़ा देते हैं. इसके बावजूद कोई जवाबदेही तय नहीं होती.

समाधान की दिशा में कदम
दिल्ली सरकार को अब इस समस्या पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है. कई राज्यों ने स्कूल फीस नियंत्रण के लिए कानून बनाए हैं, जिससे वहां के अभिभावकों को राहत मिली है.

दिल्ली में भी ऐसा कानून बनाना जरूरी है जो:

1. फीस वृद्धि की अधिकतम सीमा तय करे. 2. स्कूलों को हर फीस वृद्धि से पहले अनुमति लेने को बाध्य करे. 3. फीस वृद्धि की स्पष्ट वजह सार्वजनिक करने का नियम लागू करें. 4. नियमों का उल्लंघन करने पर स्कूलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करे.

दिल्ली के निजी स्कूलों में मनमानी फीस वृद्धि ने हजारों अभिभावकों की आर्थिक हालत को कमजोर कर दिया है. बच्चों की पढ़ाई को हथियार बनाकर स्कूल मनचाही रकम वसूलते हैं, और प्रशासन की निष्क्रियता से उन्हें खुली छूट मिल जाती है. दिल्ली सरकार इस मुद्दे पर सख्त कानून बनाए और अभिभावकों को राहत पहुंचाए. जब तक ठोस कदम नहीं उठाए जाएंगे, तब तक यह परेशानी यूं ही बनी रहेगी और इसका खामियाजा बच्चों को भुगतना पड़ेगा.

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