बकरीद एक वार्षिक त्यौहार है जिसे मुस्लिम समुदाय द्वारा विश्व स्तर पर मनाया जाता है, जिसे ‘बलिदान का त्यौहार’ भी कहा जाता है. यह त्यौहार पैगम्बर इब्राहिम द्वारा अपने बेटे की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है और पवित्र शहर मक्का की हज यात्रा के अंत का प्रतीक है. इस्लामी कैलेंडर के अनुसार, हर वर्ष अंतिम माह ज़ु अल-हज्जा में बकरीद का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन ‘हलाल जानवर’ की बलि दी जाती है. जानिए इस वर्ष बकरीद कब मनाई जा रही है, और साथ ही यह भी जानिए कि कुर्बानी की परंपरा कैसे शुरू हुई.
इस वर्ष ईद उल-अजहा जून के प्रारंभ में मनाई जाएगी. यह बलिदान का त्योहार है जिसमें मुसलमान जानवरों की कुर्बानी करते हैं. इस साल यह 6 या 7 जून को मनाया जाएगा.
क्यों दी जाती है बकरीद पर कुर्बानी
इस्लामिक विश्वासों के अनुसार, एक बार अल्लाह ने पैगंबर हज़रत इब्राहीम की परीक्षा लेने का निर्णय लिया. इसलिए, उन्होंने हज़रत इब्राहीम को एक सपने के माध्यम से अपनी प्रिय वस्तु को कुर्बान करने का आदेश दिया. जब हज़रत इब्राहीम जागे, तो वह इस विचार में पड़ गए कि उनके लिए सबसे प्रिय वस्तु क्या है? यह उल्लेखनीय है कि हज़रत इब्राहीम अपने एकमात्र बेटे इस्माइल से अत्यधिक प्रेम करते थे. फिर भी, अल्लाह की आज्ञा का पालन करने के लिए, वह अपने बेटे को कुर्बान करने के लिए तैयार हो गए.
जब वह अपने बेटे को बलिदान करने के लिए जा रहे थे, तब उन्हें एक शैतान मिला. उसने हज़रत इब्राहीम से कहा कि वे अपने बेटे की जगह किसी जानवर की बलि दें. हज़रत इब्राहीम को शैतान की यह सलाह आकर्षक लगी, लेकिन उन्होंने सोचा कि यह अल्लाह के आदेश का उल्लंघन होगा. इसलिए, उन्होंने बिना किसी संकोच के अपने बेटे के साथ आगे बढ़ना जारी रखा. वे उस स्थान पर पहुंचे जहाँ बेटे की बलि दी जानी थी, लेकिन पिता का प्रेम उन्हें ऐसा करने से रोक रहा था. इस स्थिति में, उन्होंने अपनी आँखों पर पट्टी बांध ली ताकि पुत्र प्रेम अल्लाह के मार्ग में बाधा न बने. इसके बाद, उन्होंने बलिदान कर दिया. जब उन्होंने अपनी आंखों से पट्टी हटाई, तो उन्हें आश्चर्य हुआ कि उनका बेटा इस्माइल सुरक्षित है और उनकी जगह एक डुम्बा ( बकरी की एक प्रजाति) कुर्बान हो गया था. इसके बाद से ही कुर्बानी के तौर पर बकरा को कुर्बान किया जाता है.