भारत के साथ हालिया संघर्ष पाकिस्तान को जिन देशों से खुला समर्थन मिला है, उनमें एक अहम नाम तुर्की का है। तुर्की ने जिस तरह पाकिस्तान को ड्रोन और हथियार दिए, वह दिखाता है कि दोनों देशों में रिश्ते काफी बेहतर हो गए हैं। तुर्की के पाक को इस समर्थन ने इसलिए भी दुनिया का ध्यान खींचा क्योंकि उसने भारत जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था की नाराजगी की कीमत पर ये किया है। तुर्की में 2018 से 2020 तक भारत के राजदूत रहे संजय भट्टाचार्य ने पाकिस्तान के साथ तुर्की के खड़े होने की वजह पर बात की है।

भारत के वरिष्ठ राजनयिकों में शुमार और तुर्की को करीब से समझने वाले संजय भट्टाचार्य ने द गिस्ट नाम के कार्यक्रम में कहा कि तुर्की और पाकिस्तान के रिश्ते नए नहीं हैं। ये रिश्ते पुराने और धार्मिक आधार पर हैं। भट्टाचार्य ने कहा, ‘तुर्की के राष्ट्रपति ने कई बार कश्मीर का मुद्दा उठाया है। तुर्की के विदेश मंत्रालय के बयान में भी कश्मीर मुद्दे का जिक्र आता रहा है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने पर भी तुर्की का बयान भारत के लिए सकारात्मक नहीं था। ये सब पाकिस्तान के लिए तुर्की का प्यार दिखाता है।’

तुर्की और पाकिस्तान के संबंध

भट्टाचार्य कहते हैं, ‘तुर्की ने 1950 के दशक में ही पाकिस्तान के साथ संबंध बनाने का फैसला किया था, जब दोनों ही देश अमेरिका के करीबी सहयोगी थे। इसके बावजूद उस समय की तुर्की की सरकारों ने भारत के साथ संबंधों में संतुलन बनाए रखने की कोशिश की। तुर्की के रुख में बदलाव रेसेप तैय्यप एर्दोगन के तुर्की सत्ता में संभालने के बाद आया। एर्दोगन ने तुर्की में इस्लामी विचारधारा को बढ़ावा दिया लेकिन अरब देशों से उनकी खास नहीं बनी जबकि पाकिस्तान ने उनका स्वागत किया। इससे तुर्की का झुकाव पाकिस्तान की तरफ हो गया।’

संजय भट्टाचार्य का मानना है कि पाकिस्तान एर्दोगन के इस्लामी एजेंडे में एक वफादार सहयोगी है। एर्दोगन का घरेलू एजेंडा भी इस्लामी विचारधारा को बढ़ावा देने का रहा है और सामाजिक सेवाओं और वित्तीय सेवाओं में भी धार्मिक पहलू को वह काफी अहमियत देते हैं। उनकी विदेश नीति में भी ये दिखता है। पाकिस्तान खुद को इस्लाम की बुनियाद पर बना मुल्क कहता है। ऐसे में एर्दोगन को पाकिस्तान में एक भरोसेमंद साथी नजर आ रहा है।

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